और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते है ।

 दिनभर सपनो के पीछे हम दौड़ते हैं,

अख़िर असफलता हम पाँतें हैं,

रात को ये आँखे रोते रोते सोते हैं,

और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते हैं ।


हम आसमान के तरफ़ देखते हैं,

हारकर भी दुनिया के सामने रोते हैं,

देर रात तक हम उसी के बारे मैं सोचते हैं,

और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते है ।


हार मान कर भी हम सर उठाते हैं,

वो नाम पर लगा हुआ कलंक हम मिटाते हैं,

वहाँ तक पहुँचने से पहले ही डर जाते हैं,

और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते है ।


जीत की आशा हम दिल मैं रखाते हैं,

रात का दिन भी हम कर देते हैं,

आशा की किरण हम ढूँढते ही रहते हैं,

और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते है ।


जहाँ से सुरु किया था वही पे आ जाते हैं,

जातें जातें रास्ते भूल हम जाते हैं,

कोशिशें भी घुटने टेकटी हैं,

और खिलोनो की तरह सपने टूट जाते है ।




कवी - शिवम सत्यवान मद्रेवार.

(©️ सर्व हक्क संपादीत ) 

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